Kidney Bonafide
Monday, 22 June 2015
Q&A about kidney donation: A donor's perspective
दाता स्वीकारकर्ता के बिना कुछ भी नहीं
दाता को महान पुण्य करने वाले व्यक्ति के रूप में माना जाता है और स्वीकारकर्ता को विनम्रता का पात्र, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।
दाता स्वीकारकर्ता के बिना कुछ भी नहीं होता। चाहे वो अंगदान ही क्यों न हो।
भारतीय पौराणिक कथाओं में भी कई ऐसे उदाहरण है जिसमे भगवान खुद एक स्वीकारकर्ता के रूप में दिखे है। वामन अवतार में भगवान विष्णु ने दानव राजा बाली से दान स्वीकार करने के लिए एक बौने का रूप ले लिया था। नतीजन, दाता राजा बाली राक्षसी रूप से उठकर दैवीय रूप में आ गए थे। भगवान महान दाता भी है और स्वीकारकर्ता भी है। वह सब कुछ देता है। वह सब कुछ स्वीकार भी करता है, प्रार्थना भी और डांट भी। एक योग्य व्यक्ति द्वारा एक पुरस्कार की स्वीकृति दाता के लिए एक विशेषाधिकार है और सम्मान के रूप में माना जाता है।
इसलिए न दाता को दान के लिए एहसानमंद होना चाहिए और न ही स्वीकारकर्ता को खुद को ऋणी समझना चाहिए।
दाता स्वीकारकर्ता के बिना कुछ भी नहीं होता। चाहे वो अंगदान ही क्यों न हो।
भारतीय पौराणिक कथाओं में भी कई ऐसे उदाहरण है जिसमे भगवान खुद एक स्वीकारकर्ता के रूप में दिखे है। वामन अवतार में भगवान विष्णु ने दानव राजा बाली से दान स्वीकार करने के लिए एक बौने का रूप ले लिया था। नतीजन, दाता राजा बाली राक्षसी रूप से उठकर दैवीय रूप में आ गए थे। भगवान महान दाता भी है और स्वीकारकर्ता भी है। वह सब कुछ देता है। वह सब कुछ स्वीकार भी करता है, प्रार्थना भी और डांट भी। एक योग्य व्यक्ति द्वारा एक पुरस्कार की स्वीकृति दाता के लिए एक विशेषाधिकार है और सम्मान के रूप में माना जाता है।
इसलिए न दाता को दान के लिए एहसानमंद होना चाहिए और न ही स्वीकारकर्ता को खुद को ऋणी समझना चाहिए।
Friday, 12 June 2015
मानवता ही हर धर्म की नींव है और अंगदान मानवता का एक रूप
व्यापक संदर्भ में, सभी धर्म एक आम चरित्र को बताते हैं और वो है मानवता । दान, चाहे किसी भी रूप में हो, हमारी प्राथमिकताओ या नैतिक मूल्यों के बारे में नहीं है, अपितु यह करुणा, साहस और भाईचारे का प्रचार करने, देने से जो परम आनंद और संतुष्टि मिलती हैं, उसके, एक बेहतर दुनिया का निर्माण करने और मानव जाति की मदद करने के बारे में है।
लोग अंगदान के विषय में अज्ञात क्यों रहना चाहते है, ये मुझे नहीं पता, लेकिन जहा तक मुझे लगता है, इसका एक बहूत बड़ा कारण डर है । क्या आप गलत कर रहे हैं? क्या आपका निर्णय सही है? क्या होगा यदि आपका निर्णय गलत निकला और बाद में आप उसे सही नहीं कर सके? क्या आपका धर्म इसकी इजाज़त देता है?
इतना सब सोचने के बजाय हमे यह सोचना चाहिए की शायद सही समय पर उठाया गया छोटा कदम भविष्य की बड़ी समस्याओं से बचा सकता है। हम यह दिखावा नहीं कर सकते की हम कुछ जानते नहीं थे। हमने सब कहावतो, पुराणो और दार्शनिकों में पढ़ा है, सुना है, हमारे पूर्वजो और समाज से सुना है की दान करना सही है, फिर भी कभी कभी हमें खुद जानने की आवश्यकता होती है। जानना सोचते रहने से बेहतर है, जागना सोने से बेहतर है और कुछ करने की हिम्मत करना, कुछ न करने से कहीं बेहतर है.
यहाँ मैं विभिन्न धर्मों में अंग दान या सामान्य रूप में दान के बारे में क्या मान्यताएं रखते है, ये साँझा कर रही हूँ: -
हिन्दू धर्म
हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद जीवन और पुनर्जन्म एक दृढ़ विश्वास है। जीवन, जन्म और आत्मा के पुनर्जन्म का निरंतर चक्र है तथा यह प्रक्रिया अनंत काल तक चलती रहती है, अतः भौतिक शरीर नगण्य है। इस कांसेप्ट को हिंदू धर्म में अंग दान और प्रत्यारोपण की अवधारणा पर सकारात्मक दृष्टिकोण के रूप में देखा जा सकता है।
जैन धर्म
जैन धर्म में, दया और दान को प्रमुख गुण माना जाता है। अंग दान व्यापक रूप से जैन समुदाय के नेताओं और भिक्षुओं द्वारा समर्थित किया गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार मुंबई में, नेत्र दान सहित सभी अंग दान (85-90%) जैन और गुजरातियों द्वारा किये जाते है. Gujarat में जैन धर्म के लोगो की आबादी ज्यादा होने की वजह से नेत्र दान में काफी सफलता मिली है.
बुद्ध धर्म
बौद्ध धर्म के अनुसार, दुसरो को नया जीवन देने की खातिर अपने शरीर का कोई अंग दान करना एक महान योग्यता है। भगवान बुद्ध ने भी एक खरगोश के रूप में अपने पिछले जन्म में आग में कूद कर एक भूखे ग्रामीण को पोषण देने के लिए खुद का बलिदान कर दिया था. दान करने का फैसला, बौद्ध धर्म के अनुसार, अंगदाता के द्वारा ही किया जाना है। यह स्पष्ट नहीं है की मस्तिष्क मृत्यु (brain death) बौद्ध धर्म के अनुसार मौत का एक रूप है या नहीं है, क्योंकि मरा हुआ व्यक्तिं स्वयं का निर्णय नहीं कर सकता है. लेकिन ऐसे केस में भी बोध धर्म अंगदान को एक नेक कार्य मानता है.
रोमन कैथोलिक चिकित्सक नैतिकता
कैथोलिक चिकित्सा नैतिकता में Pope Pius XII ने कहा है की मृत्यु को चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा निर्धारित किया जाता है. चुकीं "यह चर्च की क्षमता के भीतर नहीं आता" , इसलिए चर्च इस मुद्दे पर चिकित्सा समुदाय के दृष्टिकोण का समर्थन करने के लिए बाध्य है। हाल ही में, विज्ञान के बिशप अकादमी ने कैथोलिक सिद्धांत को सही ठहराया है।
इसलाम
अधिकतर इस्लामी धार्मिक नेताओं ने जीवन को बचाने के क्रम में अंगदान- जीवन के दौरान (बशर्त है की उससे दाता को कोई नुक्सान न हो) और मृत्युपरान्त, को स्वीकार किया हैं। हालांकि, अधिकांश धार्मिक नेता मस्तिष्क मृत्यु को मौत नहीं मानते क्योकि मौत की घोषणा के लिए एक पूर्व शर्त के रूप में दिल की धड़कन समेत जीवन के सभी लक्षण की समाप्ति अनिवार्य है, इसलिए इस्लाम में अंगदान की इजाज़त है.
जूदाईस्म
यहूदी चिकित्सा नैतिकता, अंगदान के लिए एक अद्वितीय दृष्टिकोण रखता है। यह किडनी प्रत्यारोपण, आंशिक जिगर पालि (वयस्क / बाल) प्रत्यारोपण, ब्लड डोनेशन को प्रोत्साहित करता है, लेकिन इसमें दो बुनियादी शर्ते है- पहली ये की इससे दाता की जान का खतरा न हो और दूसरी इससे किसी और की जान बच रही हो.
उम्मीद है यह ज्ञान आपको अंगदान (जीवित या मरणोपरांत ) का फैसला करने में मदद करेगा. धन्यवाद
मानवता ही हर धर्म की नींव है और अंगदान मानवता का एक रूप.
Donate. Save lives.
लोग अंगदान के विषय में अज्ञात क्यों रहना चाहते है, ये मुझे नहीं पता, लेकिन जहा तक मुझे लगता है, इसका एक बहूत बड़ा कारण डर है । क्या आप गलत कर रहे हैं? क्या आपका निर्णय सही है? क्या होगा यदि आपका निर्णय गलत निकला और बाद में आप उसे सही नहीं कर सके? क्या आपका धर्म इसकी इजाज़त देता है?
इतना सब सोचने के बजाय हमे यह सोचना चाहिए की शायद सही समय पर उठाया गया छोटा कदम भविष्य की बड़ी समस्याओं से बचा सकता है। हम यह दिखावा नहीं कर सकते की हम कुछ जानते नहीं थे। हमने सब कहावतो, पुराणो और दार्शनिकों में पढ़ा है, सुना है, हमारे पूर्वजो और समाज से सुना है की दान करना सही है, फिर भी कभी कभी हमें खुद जानने की आवश्यकता होती है। जानना सोचते रहने से बेहतर है, जागना सोने से बेहतर है और कुछ करने की हिम्मत करना, कुछ न करने से कहीं बेहतर है.
यहाँ मैं विभिन्न धर्मों में अंग दान या सामान्य रूप में दान के बारे में क्या मान्यताएं रखते है, ये साँझा कर रही हूँ: -
हिन्दू धर्म
हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद जीवन और पुनर्जन्म एक दृढ़ विश्वास है। जीवन, जन्म और आत्मा के पुनर्जन्म का निरंतर चक्र है तथा यह प्रक्रिया अनंत काल तक चलती रहती है, अतः भौतिक शरीर नगण्य है। इस कांसेप्ट को हिंदू धर्म में अंग दान और प्रत्यारोपण की अवधारणा पर सकारात्मक दृष्टिकोण के रूप में देखा जा सकता है।
जैन धर्म
जैन धर्म में, दया और दान को प्रमुख गुण माना जाता है। अंग दान व्यापक रूप से जैन समुदाय के नेताओं और भिक्षुओं द्वारा समर्थित किया गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार मुंबई में, नेत्र दान सहित सभी अंग दान (85-90%) जैन और गुजरातियों द्वारा किये जाते है. Gujarat में जैन धर्म के लोगो की आबादी ज्यादा होने की वजह से नेत्र दान में काफी सफलता मिली है.
बुद्ध धर्म
बौद्ध धर्म के अनुसार, दुसरो को नया जीवन देने की खातिर अपने शरीर का कोई अंग दान करना एक महान योग्यता है। भगवान बुद्ध ने भी एक खरगोश के रूप में अपने पिछले जन्म में आग में कूद कर एक भूखे ग्रामीण को पोषण देने के लिए खुद का बलिदान कर दिया था. दान करने का फैसला, बौद्ध धर्म के अनुसार, अंगदाता के द्वारा ही किया जाना है। यह स्पष्ट नहीं है की मस्तिष्क मृत्यु (brain death) बौद्ध धर्म के अनुसार मौत का एक रूप है या नहीं है, क्योंकि मरा हुआ व्यक्तिं स्वयं का निर्णय नहीं कर सकता है. लेकिन ऐसे केस में भी बोध धर्म अंगदान को एक नेक कार्य मानता है.
रोमन कैथोलिक चिकित्सक नैतिकता
कैथोलिक चिकित्सा नैतिकता में Pope Pius XII ने कहा है की मृत्यु को चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा निर्धारित किया जाता है. चुकीं "यह चर्च की क्षमता के भीतर नहीं आता" , इसलिए चर्च इस मुद्दे पर चिकित्सा समुदाय के दृष्टिकोण का समर्थन करने के लिए बाध्य है। हाल ही में, विज्ञान के बिशप अकादमी ने कैथोलिक सिद्धांत को सही ठहराया है।
इसलाम
अधिकतर इस्लामी धार्मिक नेताओं ने जीवन को बचाने के क्रम में अंगदान- जीवन के दौरान (बशर्त है की उससे दाता को कोई नुक्सान न हो) और मृत्युपरान्त, को स्वीकार किया हैं। हालांकि, अधिकांश धार्मिक नेता मस्तिष्क मृत्यु को मौत नहीं मानते क्योकि मौत की घोषणा के लिए एक पूर्व शर्त के रूप में दिल की धड़कन समेत जीवन के सभी लक्षण की समाप्ति अनिवार्य है, इसलिए इस्लाम में अंगदान की इजाज़त है.
जूदाईस्म
यहूदी चिकित्सा नैतिकता, अंगदान के लिए एक अद्वितीय दृष्टिकोण रखता है। यह किडनी प्रत्यारोपण, आंशिक जिगर पालि (वयस्क / बाल) प्रत्यारोपण, ब्लड डोनेशन को प्रोत्साहित करता है, लेकिन इसमें दो बुनियादी शर्ते है- पहली ये की इससे दाता की जान का खतरा न हो और दूसरी इससे किसी और की जान बच रही हो.
उम्मीद है यह ज्ञान आपको अंगदान (जीवित या मरणोपरांत ) का फैसला करने में मदद करेगा. धन्यवाद
मानवता ही हर धर्म की नींव है और अंगदान मानवता का एक रूप.
Donate. Save lives.
Thursday, 11 June 2015
Religion or no religion.... Humanity exists
In broader terms, all religions points out to one common character - Humanity. Donation, in any form, is not about your preferences or moral values, but its about Compassion and courage to help human kind, to propagate brotherhood, to enjoy the gratitude of giving and build a better world.
I don't know why we put things off, but if I had to guess, I'd have to say it has a lot to do with fear. Sometimes the fear is just of making a decision, because what if you're wrong? What if you're making a mistake you can't undo?
A stitch in time saves nine. We can't pretend we hadn't been told. We've all heard the proverbs, heard the philosophers, heard our grandparents and society. Still sometimes we have to see for ourselves. That knowing is better than wondering, that waking is better than sleeping, and even the biggest failure, even the worst, beat the hell out of never trying.
Learn. Understand. Donate. Save lives.
Here i am sharing what different religions have to say about organ donation, or donation in general:-
Hinduism
Life after death is a strong belief of Hinduism and is an ongoing process of rebirth. It is a perpetual circle of birth and rebirth of the soul, so the physical body is insignificant. This could be seen as reflecting positively on the concept of organ donation and transplantation in Hinduism.
Jainism
In Jainism, compassion and charity are considered to major virtues. Organ donation has been widely supported by the Jain community leaders and monks. It has been reported that in Mumbai, 85-90% of all organ donations including eye donations, are by Jains and Gujaratis (a significant fraction of them are Jain in Mumbai).Gujarat has had considerable success with the eye donation program due to a significant population of the Jain community, which considers eye donation as a sublime form of charity.
Buddhism
According to Buddhism, it is a great Merit to donate ones own flesh for the sake of another. The lord Buddha is also believed to be sacrificed himself by jumping into a fire in order to nourish a lost and starved villager in woods, in a previous life as a rabbit.
The choice of making the donation has to be made by the donor himself according to Buddhism. It's not clear brain death is a form of death according to Buddhism. But if it considered as death, in which case one cannot make decision of ones self, it's a good deed for one who died and also for the ones involved in decision making and contributing.
Roman Catholic medical ethics
In Catholic medical ethics, Pope Pius XII stated that death is determined by medical experts and it "does not fall within the competence of the Church." Advocates of brain death criteria have claimed that this implies that the church is bound to support the view of the medical community on this issue. More recently, the Pontifical Academy of Science has upheld Catholic doctrine.
Islam
The majority of Islamic religious leaders accept organ donation during life (provided it does not harm the donor) and after death in order to save life. Most religious leaders do not accept brain death as a criterion and consider cessation of all signs of life including heart beat as a precondition for declaring death.
Despite this position by Islamic religious leaders, Muslims are oftentimes uncertain about whether or not Islamic tradition considers organ donation to be forbidden. This uncertainty stems from ambiguity caused by conflicting opinions among some Islamic leaders regarding this issue. Moreover, a lack of support along with a generally negative attitude toward organ donation and transplantation has been reflected in surveys of diverse Islamic populations.
Judaism
Jewish medical ethics takes a unique approach. It encourages live organ donation, such as kidney transplant, partial liver lobe (Adult/Child) transplant and the like, when two basic conditions are met, firstly, that the operation does not (significantly) endanger the life of the donor, and secondly, that the recipient's life will be saved through this donation. However, opinions are divided on the issue of organ donations which will permanently end the donor's heart beating, in a case when the donor is brain dead.
Meanwhile, proponents of the brain death criterion, such as Halachic Organ Donor Society have been active in advocating organ donations and transplants either at brain death or even at cessation of heart beat, where donation of corneas and skin is still medically possible.
I hope this helps while you are in dilemma of donating( living or dead) or not donating. God bless.
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